जब भी गुस्सा आता है
मुस्कुराती हूं
जब भी रोना होता है
गाती हूं
जब कभी सब फेंक देने का मन होता है
कपड़े, इस्त्री कर घड़ी कर के रखती हूं
घर साफ करती हूं
जब सब उधड़ रहा होता है
उन्हीं धागों से
कसीदे काढ़ती हूं
खुद से लेकर सरकार तक
इसी तरह लड़ती हूं
मुस्कुराती हूं
जब भी रोना होता है
गाती हूं
जब कभी सब फेंक देने का मन होता है
कपड़े, इस्त्री कर घड़ी कर के रखती हूं
घर साफ करती हूं
जब सब उधड़ रहा होता है
उन्हीं धागों से
कसीदे काढ़ती हूं
खुद से लेकर सरकार तक
इसी तरह लड़ती हूं
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