Samstag, 10. September 2011

chhip jayen

ये मौसम आया है कितने सालों में..
आजा के खो जाएँ ख़्वाबों-खयालों में...

फिर धूप खिली है सालों में
आजा कि खो जाएं ऊबदार उजालों में

मौसम खिजां का गालों में
आ जा कि खो जाएं नम से पुआलों में

तुम बीन लाओ नीलगिरी की टोपियां
मैं सहेजू उन्हें रुमालों में

सर्दियों से लपेटे मुहब्बत अपनी 
छुप जाएँ प्यार के दुशालों में
आभा ... (पहली दो पंक्तियां दिनेश जोशी जी की हैं...)

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