Samstag, 1. September 2012

ख्यालों के बूंदे


तेजी से गुजरती रेल से
जलते हुए लैंप जैसे दिखाई देते हैं
वैसे ही जिंदगी मेरे सामने से गुजर रही है
तेज, शोर से भरी
अचानक कोई लम्हा
ब्लैक एंड व्हाइट फोटो के निगेटिव जैसा
ठहर जाता है किसी स्टेशन पर कुछ देर
उस लम्हे के साए चेहरों की याद दिलाते हैं
तेजी से गुजरती रेल से बाहर
कोई रंग नहीं बचता
बस तेजी से चलती चौखटों में
हरे, नीले और सुनहरी
काले और रोशनी से चौंधियाए हुए....