Sonntag, 19. Februar 2012

अब बस....

अनजानी, अजनबी लकीरें हैं 
रंगीन एब्स्ट्रैक्ट से रिश्ते में 
कत्थई, सुनहरे से पत्ते हैं, 
पतझड़ हो चुकी दीवारों में
कुछ बोसीदा सी खिड़कियां हैं 
अंधेरा हो रही मीनारों में
अब बस गेहूं की बीनाई है

कट चुके इन खेतों में 

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