Freitag, 27. Januar 2012

हो ही नहीं पाता

एक चमेली खिलती है मुझमें
जाने किसके कांटों से डर
महक ही नहीं पाती

एक घर बनता है मुझमें
न जाने किन दिवारों से सहम
छत बना नहीं पाता

एक सूरज उगता है मुझमें
चांद की याद में घुलता
दहक ही नहीं पाता

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